Answer Podcast
https://www.thespiritualscientist.com/audio/CCD%20QA/2018%20QA/02-18%20QA/Our%20mind%20is%20our%20enemy%20-%20how%20can%20we%20control%20it%20-%20Hindi.mp3
Transcription Seva by: Her Grace Manju Agrawal Mataji (Muzaffarnagar)
प्रश्न– क्या मन हमारा शत्रु है? हम उसे अपना मित्र कैसे बना सकते हैं?
उत्तर– मन स्थाई रूप से हमारा शत्रु नहीं है किन्तु परिस्थितिवश वह हमारा शत्रु बन गया है। मन वास्तव में एक उपकरण की भाँति है जिसकी आवश्यकता हमें भौतिक जगत के कार्यों के लिए पड़ती है। भौतिक जगत के प्रभाव के कारण अनेक प्रकार के संस्कार और छवियाँ मन पर अंकित हो जाते हैं। ये विभिन्न संस्कार हमें प्रेरित करते हैं कि क्या करें या न करें।
दो व्यक्तियों की कल्पना कीजिए जिनके घर और दफ्तर आस-पास हैं। वे दोनो जब घर से दफ्तर जाते हैं तो उनके मार्ग में एक शराब की दुकान पड़ती है। उनमें से एक प्रतिदिन जब भी शराब की दुकान से होकर गुजरता है तो वहाँ पर रुक कर शराब का सेवन करता है, किन्तु दूसरे व्यक्ति को ध्यान भी नहीं आता कि मार्ग में शराब की दुकान भी है।
दोनों व्यक्तियों में क्या अंतर है? पहले व्यक्ति के मन पर बार-बार शराब पीने से शराब की छवि अंकित हो गई है इसलिए उसका मन बार-बार उसे शराब पीने के लिए प्रेरित करता है। यदि वह शराब न पिए तो उसका मन उद्विग्न हो उठता है। उस व्यक्ति ने अपने मन को अपना शत्रु बना लिया है।
वर्तमान समाज भौतिकतावादी है। ऐसे समाज में रहते-रहते हमारे मन पर भौतिकतावाद की छाप पड़ गई है। परिणामस्वरूप, हम कुविचारों को अपना लेते हैं एवं कुमार्ग पर प्रवृत्त हो जाते हैं।
मन को मित्र बनाने और नियंत्रित करने के लिए हमें मन पर सकारात्मक संस्कार एवं छवियाँ डालनी होंगी। ऐसा तभी होगा जब हम स्वयं को भक्ति के कार्यों – जैसे मंदिर जाना, भगवान के विग्रहों के दर्शन करना, जप करना, हरिकथा श्रवण करना इत्यादि – में प्रवृत्त करेंगे। इन कार्यों के द्वारा मन पर सकारात्मक छवियाँ अंकित होंगी जो हमें सकारात्मक कार्यों की ओर प्रवृत्त करेंगी।
मन पर पड़े कुसंस्कारों एवं नकारात्मक छवियों को परिवर्तित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। अतः हम यह जानने का प्रयास करें कि वो कौनसे कारण हैं जो हमारे मन को पतन की ओर ले जा रहे हैं। हमें ऐसे कारणों से दूरी बनाने का प्रयास करना चाहिए।
मन नियंत्रण के लिए इन तीन शब्दों को सदैव ध्यान रखें – मनोस्थिति, परिस्थिति, संस्कृति।
मनोस्थिति अर्थात हमारे मन के भीतर क्या चल रहा है। परिस्थिति अर्थात हमारे चारों ओर कैसा वातावरण है। संस्कृति अर्थात हमारे संस्कार कैसे हैं।
हमारी मनोस्थिति हमारी परिस्थितियों से निर्धारित होती है। परिस्थितियों को बदलने पर मनोस्थिति को बदला जा सकता है। उदाहरणार्थ – यदि कोई व्यक्ति शराब छोड़ने का निर्णय करे किन्तु उसका घर शराब की दुकान के बहुते निकट है तो परिस्थितिवश उसके लिए शराब छोड़ना बहुत कठिन होगा। जब भी वह शराब की दुकान को देखेगा तो उसका मन उसे पीने के लिए बाध्य करेगा। उसे अपनी परिस्थिति को बदलने के लिए अपना घर बदल लेना चाहिए। किन्तु क्या परिस्थितियों को हमेशा बदला जा सकता है?
सम्भव है कि हम अपनी परिस्थितियों को हमेशा न बदल पाऐं किन्तु उनमें कुछ परिवर्तन अवश्य ला सकते हैं। जैसे हम अपनी […]